(कुंवर आर.पी.सिंह), शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र।
संत जरथ्रुस्त का जन्म ईरान के राजवंश में हुआ था। मात्र 15 वर्ष की अवस्था में ही उन्होंने संसार से विरक्त होकर ध्यान उपासना का मार्ग चुन लिया था। एरिमन नामक एक दुर्व्यसनी ने उन्हें डिगाने का बहुत प्रयास किया, लेकिन वह धर्म मार्ग पर अडिग रहे। जरथ्रुस्त ने जगह जगह जाकर धर्म सदाचार सत्य और अहिंसा का प्रचार प्रसार किया।
वैक्ट्रिया के राजा ने उनके सदाचार से प्रभावित होकर उन्हें गुरू माना। एक दिन एक जिज्ञासू उनसे प्रभावित होकर उनके पास पहुँचा और उनसे प्रश्न किया कि ज्ञान प्राप्त कर लेने मात्र से ही कल्याण संभव है ? जरथ्रुस्त ने बताया कि शैतान या शैतानी मान्यताओं से बचने के लिए ज्ञान आवश्यक है। किन्तु सिर्फ ज्ञान से सर्वागीण विकास असम्भव है। जीवन यापन करने के लिए कर्म और सेवा परोपकार भी आवश्यक है। कर्तव्यनिष्ठ व्यक्ति ही अपना और समाज का भला कर सकता है।
कुछ क्षण रुककर उन्होंने फिर कहा,श्रेष्ठ ज्ञान उन्हें मिलता है ,जो ईश्वर को ध्यान में रखकर काम करते हैं। और श्रेष्ठ कर्म का फल उन्हें ही प्राप्त होता है ,जो मानव में ईश्वर को देखते हैं। तथा वो जो सेवा और विनम्रता भाव से कर्मरत हैं। संत जरथ्रुस्त संयम ,सदाचार और अग्नि को बहुत महत्व देते थे। उनका मत था, कि "संयम और सदाचार" रूपी अग्नि -देवता समस्त बुराईयों को भस्म करने में सक्षम हैं।
राष्ट्रीय अध्यक्ष जय शिवा पटेल संघ