ओबीसी का आरक्षण कोटा गरीब की लुगाई नही, जो....


(सुभाष चन्द्र नेताजी, लखनऊ), शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र। ओबीसी के लिए मण्डल कमीशन की सिफारिश लागू होने से पूर्व पंचायत और नगरपालिकाओं में सीट रिजर्व नही रहती थी, जबकि एससी/ एसटी के लिए सविंधान लागू होते ही आर्टिकल 330, 332 के तहत यह व्यवस्था कर दी गई।
दरअसल आरक्षण के खिलाफ ओबीसी को इसलिए बरगलाया जाता है, क्योंकि मण्डल कमीशन की 16 महत्वपूर्ण सिफारिशों में पिछड़े वर्ग के लिए उसकी जनसंख्या के अनुपात में विधानसभा और लोकसभा में सीट रिजर्व करना है, जैसे एससी/एसटी के लिए आर्टिकल 330, 332 के तहत यह व्यवस्था है। यही सबसे बड़ी समस्या है नागपुर के देवताओं और मनुवादियों के लिए, क्योंकि अगर ऐसा होता है, तो डिसीजन और लाॅ मेकिंग में ओबीसी रिप्रेजरेटिव की भूमिका अहम हो जायेगी पास, इसीलिए जब संसद में ओबीसी की जाति आधारित जनगणना का मुद्दा आया तो केजरीवाल, अन्ना हजारे का जनलोकपाल आ गया।


अब फिर आंकड़े जारी करने की मांग जोर पकड़ रही है, तो उसे छुपाने हांर्दिक पटेल जैसे चेहरे को आगे लाकर ओबीसी को काउंटर किया जा रहा है और आंदोलन में हिंसा भी ही रही है। ऐसे फर्जी आंदोलन होते रहे है और होते रहेंगे। हर शख्स, हर जाति आरक्षण चाहती है और वह भी ओबीसी के 27 प्रतिशत में। क्यों भाई 27 प्रतिशत ओबीसी का आरक्षण गरीब की औरत है क्या, कि जो भी आये भौजी कह ले। सबसे पहले संवैधानिक तौर पर लागू मण्डल कमीशन को केन्द्र के साथ सभी राज्य पूरी तरह से अक्षरशः लागू करें, जिसके तहत सबसे पहले बैकलाॅग के माध्यम से ओबीसी का कोटा पूरा करें। पर्याप्त सुनिश्चितता करने के लिये ओबीसी को भी पदोन्नती में आरक्षण दें। लोकसभा, विधानसभा, पंचायत में ओबीसी की सीटें निर्धारित करें तथा जो भी पार्टिया अपने को ओबीसी का हितैषी कहती हैं, अपनी पार्टी के मूल संगठन में, टिकट वितरण में
ओबीसी को आबादी के अनुपात में हिस्सा देकर दिखायेंगे तभी पार्टी पर ओबीसी भरोसा करेगा, अन्यथा अखिल भारतीय पिछड़ा वर्ग महासंघ इन सभी पार्टियों सरकारों के खिलाफ आन्दोलन कर पोल खोलने का कार्य करेगा, क्योंकि देश की आजादी के समय से ही सभी पिछड़े वर्ग को ठगने का कार्य कर रहे हैं, किसी की मंशा पूरे वर्ग के लिये ईमानदार नहीं रही। अगर जरा भी ईमानदारी बरती जाती तो 40 साल बाद लागू मण्डल कमीशन को सभी सरकारें अक्षरशः लागू करती।अब समय आ गया है इन सभी को मु°हतोड़ जवाब देने के लिये, जो दिखावे के लिये ओबीसी के हितैषी हैं, लेकिन करना भी कुछ नही चाहते हैं, क्योंकि पद पर रहकर जो अपने पद की जिम्मेदारी का निर्वहन न करना सबसे बड़ी धोखाधडी है।


शिक्षा वाहिनी समाचार पत्र में वर्ष 12 के अंक 09, 27 सितम्बर 2015 के अंक में प्रकाशित सुभाष चन्द्र नेताजी, लखनऊ का लेख


 


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